श्री देव सुमन पर कविता :
इस गढ़भूमि का लाल था वो।
सन उन्नीस और मई पच्चीस के जन्मकाल का था वो। पट्टी बमुंड और गांव जौल में।
जहां खेलता था वो दोस्तों के संग लेकर तीर और, धनुष खेल ही खेल में।
तात जिनके हरिराम बडोनी एक सुप्रसिद्ध वैद्य थे।
और माता तारा देवी में धीरता और साहस के गुण
अभेद्य थे।
सन 1919 में पिता सुमन के माहमारी हैजा से स्वर्ग को सिधार गए।
और तब माता तारादेवी पर गृहस्थ का सारा भार ला गए।
शिक्षा प्रारंभिक श्रीदेव ने नई टिहरी में ही प्राप्त किए।
और उच्च शिक्षा की खातिर देहरादून चले गए।
जहां उनके मन में क्रांतिकारी विचारधारा उमड़ने लगी
जिसकी आग से अंग्रेजी हुकूमत भी झुलसने लगी।
हिमांचल और प्रभाकर जैसी पत्रिकाओं को जिन्होंने प्रकाशित किया।
उनके ऐसे ही कदमों के कारण अंग्रेजों ने उनका जेल की ओर गमन कर दिया ।
बाद उसके टिहरी राजशाही के प्रजा पर उनके अत्यचारों के कारण उन्होंने आवाज उठाई।
राजा को उनकी यह बात रास न आई लेकिन उनकी धीरता और वीरता पर फिर भी कोई आंच न आई।
पैरों में कई वजनी बेड़ियों से उन्हें जकड़ दिया जाता था।
और कभी उस ठिठुरती सी ठंड में उनको पानी से भरी कंबलों में लिपटाया जाता था।
सन 1944 में दिन 84 के बाद करके आमरण अनशन उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया।
और फिर वह लाल अनंत उस आकाश का जैसे एक टिमटिमाता सा तारा बन गया।
नोट :
श्री देव सुमन पर कविता के लेखक श्री प्रदीप विलजवान विलोचन जी हैं। जो टिहरी गढ़वाल के रहने वाले हैं और शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। यह कविता हमने देवभूमि दर्शन पोर्टल ले साभार ली है।
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