गिर्दा की कविता – जैंता एक दिन तो आलो .
Girda poem –
ततुक नी लगा उदेख ,
घुनन मुनइ नि टेक,
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन कठुलि रात ब्यालि,
पौ फाटला, कौ कड़ालो,
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।।
जै दिन चोर नी पफलाला,
कै कै जोर नी चललो,
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।
जै दिन नान-ठुलो नि रौलो,
जै दिन त्योर-म्योरो नि होलो,
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।।
चाहे हम नि ल्यै सकूँ,
चाहे तुम नि ल्यै सकौ,
मगर क्वे न क्व तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में।
वि दिन हम नि हुँलो लेकिन,
हमलै वि दिन हूँलो …
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में।।
गिर्दा की कविता – सारा पानी चूस रहे हो ,नदी समंदर लूट रहे हो ! | Girda poem
एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ ,
एक तरफ हो तुम।
एक तरफ डूबती कश्तियाँ ,
एक तरफ हो तुम।
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ,
एक तरफ हो तुम।।
एक तरफ है प्यासी दुनियाँ,
एक तरफ हो तुम।
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी ।
तुम तो पानी के व्योपारी,
खेल तुम्हारा तुम्हीं खिलाड़ी,
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी।।
सारा पानी चूस रहे हो,
नदी, समन्दर लूट रहे हो ।
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो।।
उफ! तुम्हारी ये खुदगर्जी ।
चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती,
सर से निकलेगी सब मस्ती।।
महल-चौबारे बह जायेंगे।
खाली रौखड़ रह जायेंगे,
बूँद-बूँद को तरसोगे जब ,
बोल व्योपारी ! तब क्या होगा?
नगद उधारी !तब क्या होगा??
आज भले ही मौज उड़ा लो ।
नदियों को प्यासा तड़पा लो,
गंगा को कीचड़ कर डालो ।
लेकिन डोलेगी जब धरती ,
बोल व्योपारी ! तब क्या होगा?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी !
तब क्या होगा ?
योजनकारी ! तब क्या होगा ?
नगद उधारी ,तब क्या होगा ?
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ !
एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनियाँ,
एक तरफ हो तुम।।।
Girda poem
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