को छै तू ?
भुर-भुर उज्याई जसी जानि रते ब्याण ।
भिकुवे सिकड़ी कसि उडी जै निसाण ।।
खित करने हसण और झऊँ कने चान्
क्वाथिन कुत्काई जै लगनु मुखक बुलान्।।
मिसिर जै मिथ लागू के कार्तिकी मौ छे तू
पूषेक पाल्यु जस ओ खड्यूनी को छै तू ।।
दै जसी ग्वर उजई और बिगोद जै चिटी ।
हिसाऊ किल्मोड़ी कसि मणि खट्ट मीठी ।।
आँख की तारी कसि आँख में ले रीटि।
ऊ देई फुलदेई है जै जो देई तू हिटी ।।
हाथ पाटने हरै जाँ छै कि रूड़िक दयो छै तू ।
सुर सुरी बयाल जसी ओ च्यापनि को छै तू ।।
जाले छै तू देखि छै, भांग फूल पात में ।
और नौड़ी जै बिलै रे छै म्येर दिन रात में ।।
को फूल अंगाव हालू रंग जै सबु में छै ।
न तू क्वे न मैं क्वे मी तू में तू मी में छै ।।
तारु जै अनवार हंसे धार पर जो छै तू ।
ब्योली जै डोली भिदेर ओ रूपसी को छै तू।।
उतुके चौमास देखि छै तू उतुके रूड़
स्यूनकि सनगी देखि छै उतुके स्यून
कभी हरयाव चढ़ी और कभी कुंछई च्यूड़।
गद्युड़े छाल भिदेर तू ककड़ी फुल्यूड़।।
भ्येर पे अनार दानी और भिदेर पे स्यो छै तू।
नौ रति पौ जाणी, ओ दाबणी को छै तू ।।
ब्योज में क्वाथ में रे छै, और स्वैणा में सिरान।
म्येर दगे भल लगे मन में दिशान।।
शरीर मातन् में त्वी छै तराण।
जानि को जुग बति जुग जुगे पछ्यान्
साँसों में कुत्कने है सामणि जै कि छै तू ।
मायदार माया जस ओ लम्छिनी को छै तू ।।
कवि के बारे में –
यह कविता उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि शेर सिंह बिष्ट ” शेरदा अनपढ़ ” की कुमाउनी कविता है। 13 अक्टूबर 1933 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में जन्मे शेर सिंह बिष्ट की कविताओं में पहाड़ का जीवन समाया रहता है। शेर सिंह बिष्ट कुमाऊं के एकमात्र कवि हैं ,जो अपने नाम के पीछे अनपढ़ उपनाम लगाते हैं। शेर सिंह बिष्ट की मृत्यु 20 मई 2012 क़ो हुई थी। शेर सिंह बिष्ट का पूरा जीवन परिचय पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। …
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